Add To collaction

लेखनी कहानी -10-Jan-2023 मुहावरों पर आधारित कहानियां

6.छछूंदर के सिर पर चमेली का तेल 

 यह कहानी छछूंदर के सिर पर चमेली का तेल कहावत को ध्यान में रखकर लिखी गई है । 

आज मकर संक्रांति की धूम मची हुई थी । आसमान पतंगों से अटा पड़ा था । विभु को बहुत शौक था पतंग उड़ाने का मगर कोरोना की चपेट में आ जाने से उसने अपने सारे शौक बंद कर दिये थे । वह छत पर बैठ कर एक साथ पकौड़े और गर्म हलवे का आनंद ले रहा था और "वो मारा , वो काटा" के शोरगुल में अपनी आवाज भी मिला रहा था । पतंगों को कटते देखकर उसे बड़ा आनंद आ रहा था । वैसे भी दूसरे की पतंग काटकर जितना सुख मिलता है उतना और किसी चीज में नहीं मिलता है । 

वह अभी आसमान में पतंगों को ही देख रहा था कि अचानक उसकी निगाह पड़ोस की छत पर चली गई । उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा । पड़ोस के मकान में दो महीने पहले ही कोई किरायेदार आये थे । उनकी एक बेटी लगभग बीस साल की थी । बहुत सुंदर, गोरी चिट्टी । उसके बाल कटे हुए थे इसलिए उसने उसका नाम "परकटी" रख लिया था । विभु ने देखा कि परकटी पतंग उड़ा रही है । उसे बड़ा आश्चर्य हुआ परकटी को पतंग उड़ाते देखकर । थोड़ी ही देर में उसे पता चल गया कि उसे पतंग उड़ाना कुछ ज्यादा नहीं आता है । विभु ने सोचा छछूंदर के सिर पर चमेली का तेल वाली कहावत लागू हो रही है यहां पर । विभु की इच्छा हुई कि अभी बाजार से पतंग और मांझा लेकर आये और उसकी पतंग काट दे । पर उसने सोचा कि वह कोई मंझी हुई खिलाड़ी तो है नहीं इसलिए उससे पेच लड़ाने में क्या आनंद आयेगा ? वह चुपचाप बैठ गया । 

थोड़ी देर में परकटी की पतंग विभु की छत पर गिर पड़ी । विभु उसे उठाकर देने जा ही रहा था कि वह बोल पड़ी "आप रहने दो । आपको पतंग उड़ाना तो आता है नहीं , इसलिए मैं ही आ रही हूं पतंग लेने" । विभु को बात चुभ गई । उसने मन ही मन कहा "छछूंदर के सिर पर चमेली का तेल" शोभा नहीं देता है । पर क्या करें ? छछूंदर को ये चमेली के तेल वाली कौन बताये ? अगर गले पड़ गई तो ? लेकिन इसको इसकी औकात बतानी भी जरूरी है । आखिर उसकी काबिलियत को चुनौती दी गई थी, इसलिए अब और शांत नहीं बैठा रहा जा सकता था । विभु को जोश चढ गया । 

वह तुरंत बाजार गया और बाजार से खूब सारी पतंग , बढिया मांझा और चरखी ले आया । पीछे से परकटी आई होगी और अपनी पतंग ले गई होगी क्योंकि वह पतंग अब उसकी छत पर नहीं थी । उसने मां से पूछा "मां, छत पर कोई आया था क्या" ? 
"हां, पड़ोसी किरायेदार की एक लड़की आई थी । उसकी कोई पतंग आ गई बताई अपनी छत पर । वह अपनी पतंग ले गई है" । विभु को अब कन्फर्म हो गया था । उसका रास्ता साफ हो गया था । "आज मजा चखाऊंगा इस परकटी को । बहुत नखरे करती घूमती है यह । एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा है इसने उसे । वह कितनी बार बिना काम के ही उसके पीछे पीछे बाजार गया था मगर पता नहीं कितनी प्राऊडी है यह कि उसने एक बार भी उसे ढंग से नहीं देखा था । चलो आज दिखाते हैं कि हम क्या चीज हैं" । विभु ने मन ही मन सोचा 

उसने एक मिनट में अपनी पतंग आसमान में चढा दी । परकटी की पतंग बहुत नीचे थी । विभु ने अपनी पतंग 'सटाक' से नीचे की और तेजी से झटका मारते हुए जोर से खींच ली । परकटी की पतंग एक झटके में "खचाक" से कट गई । विभु के मुंह से जोर से आवाज निकली "वो काटा ऽऽऽऽऽऽ" । बेचारी परकटी खींसें निपोरते हुए रह गई  । 

उसने झेंपकर विभु की ओर देखा और आंखों से अंगारे बरसाने लगी । विभु की मुस्कान और चौड़ी हो गई । विभु को मुस्कुराते हुए देखकर वह और चिढ़ गई और एक चांद वाली पतंग लेकर उड़ाने लगी । विभु देख रहा था कि उसे पतंग उड़ाने में बहुत परेशानी हो रही है । पतंग बार बार छत पर वापस आ जाती थी । बड़ी मुश्किल से वह दस मिनट में उसे आसमान में पहुंचा पाई थी । इतनी देर में विभु ने पांच और पतंगें काट दी थी । वह तो परकटी की पतंग पर निगाहें जमाए बैठा था । जैसे ही परकटी की चांद वाली पतंग आसमान में उड़कर इठलाने लगी कि विभु ने फिर से उसे काट डाला । अबकी बार उसकी आवाज पहले से दुगनी हो गई "वो माराऽऽऽऽ" । अब परकटी ने भरपूर नजरों से विभु को देखा । पहली बार दोनों के नैनों के पेंच लड़े थे । परकटी की आंखों में अभी भी अहंकार की चांदनी फैली हुई थी । नजरें चार होते ही विभु के दिल में "धक धक" सी होने लगी थी । 

गुस्से से परकटी के गाल और लाल हो गये थे । उसने फिर एक पतंग निकाली और उसे उड़ाने लगी । इतने में विभु की पतंग कट गई । विभु की पतंग कटते देखकर परकटी को बहुत खुशी हुई । जब दुश्मन हमसे भारी हो और हमसे उसकी पिटाई हो नहीं रही हो तब दुश्मन की अगर कोई तीसरा आदमी पिटाई कर देता है तब बड़ा आनंद आता है । परकटी का वही हाल था । उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था । उसकी इस हालत पर विभु को बड़ा आनंद आ रहा था । 

जब परकटी की पतंग आसमान में नाचने लगी तब विभु ने दूसरी पतंग निकाल कर उड़ा दी । यह इंद्र धनुष की आकृति वाली पतंग थी । परकटी ने अपनी पतंग को बचाने की बहुत कोशिश की मगर विभु ने उसे लपेट ही लिया और पल भर में उसका पत्ता काट दिया । परकटी चिल्लाती रह गई और विभु जश्न मनाने लग गया । 
"ऐ मिस्टर ! मेरी पतंगों को क्यों काटे जा रहे हो" ? परकटी चिल्लाते हुए बोली 
"पतंग ही काट सकता हूं मिस, और कुछ नहीं । इसलिए वही कर रहा हूं" विभु ने उसे छेड़ते हुए कहा । 
"अब से आगे मेरी पतंग नहीं काटोगे आप" ? वह आदेशात्मक स्वर में बोली 
"क्यों ? आपकी पतंगों पर कोई कर्फ्यू लगा है क्या" ? विभु का चेहरा विनोदी था अब और भी विनोदी हो गया था । 
"बस, मैंने कह दिया जो कह दिया" । 
"जो हुकुम, जहांपनाह" । विभु ने दोनों हाथ जोड़ दिये । परकटी के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई । 

अब परकटी की पतंग फिर से आसमान में चढ गई थी । विभु ने इस बार उससे पेच तो लड़ा लिये मगर इस बार उसने अपनी पतंग परकटी के हाथों कटवा ली । परकटी खुशी से चीख पड़ी । विभु मंद मंद मुस्कुरा रहा था । अबकी बार परकटी की आंखों में अहंकार नहीं बल्कि प्यार ही प्यार था । उन दोनों के बीच एक नई प्रेम कहानी शुरू हो चुकी थी । 

श्री हरि 
13.1.23 

   3
2 Comments

Gunjan Kamal

20-Jan-2023 04:36 PM

वाह! बहुत खूब

Reply

Hari Shanker Goyal "Hari"

22-Jan-2023 08:10 PM

धन्यवाद मैम

Reply